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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भगवान कैसे मिलें

भगवान कैसे मिलें

जयदयाल गोयन्दका

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :126
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1061
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत है भक्त को भगवान कैसे मिलें....

भवरोग की औषधि भगवद्भजन

आपलोगोंका जो प्रेम है, मैं उसका मूल्य चुका ही नहीं सकता, मैं लज्जित होता हूँ। आपने रोगकी बात कही, इसीपर एक बात खयाल आ गयी। एक बीमार वैद्यके पास गया। वैद्यने बताया कुपथ्यका त्याग, पथ्य और औषधका सेवन। यह बात सुनी, कहा अच्छा विचार कर कहूँगा। दूसरे वैद्यके पास गया। निदान कराया, दूसरेने कहा कुपथ्यका त्याग एवं पथ्यका सेवन करना होगा, औषधिकी आवश्यकता नहीं है। तीसरेके पास गया, वैद्यने कहा औषधका सेवन करना होगा, पथ्य-कुपथ्यकी कोई बात नहीं है, औषधसे सब काम अपने-आप हो जायगा। उसने समझा यह ठीक है। औषधका सेवन किया, आराम हो गया। यह दृष्टान्त है।

महात्मा वैद्य हैं, हम सब बीमार हैं, जन्मना, मरना रोग है। योगी, ज्ञानी एवं भक्त-तीन वैद्य हैं। एकने कहा औषध और पथ्यका सेवन एवं कुपथ्यका त्याग। वह योगी था उसने यह बात बतायी कि पथ्यसे रहना होगा, योगका साधन करना होगा, दुर्गुण, दुराचारोंका त्याग करना होगा। पथ्य-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि-इन आठका सेवन करना होगा। कुपथ्यका त्याग करना होगा। उसने सोचा यह मेरे कामका नहीं है, क्योंकि कठिन है। सुनकर चला गया। दूसरेके पास गया वह ज्ञानी था, उसने कहा कुपथ्यका त्याग और पथ्यका सेवन। संसार नाशवान् है, स्वप्नवत् है, वास्तवमें नहीं है, कुपथ्य है, इस कुपथ्यका त्याग करो। सत्य पथ्य है। सच्चिदानन्दका भाव-बस यही करना होगा। उसने सोचा कठिन है। तीसरा भक्त था, उसने कहा औषध सेवन करना होगा। औषध एक है, उसके सेवनसे जो कुछ कुपथ्य हुआ है वह सब नष्ट हो जायगा। उसमें इतना गुण है कि दुर्गुण, दुराचार, दु:ख, पाप सबका नाश हो जायगा। यह काम ठीक है। यह भगवान्का भजन है। भगवान् कहते हैं-

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्तः प्रणशयति।।
(गीता ९।३०-३१)

कोई अतिशय पापाचारी, व्यभिचारी, दुराचारी है, मुझे अनन्यभाव से भजता है, मेरे नाम और रूपका स्मरण करता है, मेरी शरण आ जाता है। उसको साधु ही मानना चाहिये। भजनके प्रतापसे वह शीघ्र ही धर्मात्मा बन जायेगा। विलम्ब नहीं होगा। मैं सत्य कहता हूँ मेरे भक्तका नाश नहीं होता। सबसे बढ़कर भगवान्की भक्ति है, भजन साधन है। यह औषधकी बात बतायी।

बहुत लोग पूछा करते हैं कि संसारमें बुद्धिमान् कौन है? यह शास्त्रोंसे सिद्ध है कि वही पुरुष बुद्धिमान् है जो संसारमें जन्म लेकर उत्तरोतर अपनी उन्नति करता है। वही बुद्धिमान् है जो मनुष्यशरीर पाकर सदाके लिये जन्म-मरणसे मुक्ति पा लेता है, परम आनन्दको पा लेता है, अपनेको मुक्त कर लेता है। अब यह विचार करना है कि मुक्त करना क्या है? सब सुख, आनन्द, उन्नति चाहते हैं, चेष्टा करते हैं, फिर भी दु:ख क्यों पाते हैं? इसमें हेतु मूर्खता, दु:ख एवं अज्ञान है।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

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    अनुक्रम

  1. भजन-ध्यान ही सार है
  2. श्रद्धाका महत्त्व
  3. भगवत्प्रेम की विशेषता
  4. अन्तकालकी स्मृति तथा भगवत्प्रेमका महत्त्व
  5. भगवान् शीघ्रातिशीघ्र कैसे मिलें?
  6. अनन्यभक्ति
  7. मेरा सिद्धान्त तथा व्यवहार
  8. निष्कामप्रेमसे भगवान् शीघ्र मिलते हैं
  9. भक्तिकी आवश्यकता
  10. हर समय आनन्द में मुग्ध रहें
  11. महात्माकी पहचान
  12. भगवान्की भक्ति करें
  13. भगवान् कैसे पकड़े जायँ?
  14. केवल भगवान्की आज्ञाका पालन या स्मरणसे कल्याण
  15. सर्वत्र आनन्दका अनुभव करें
  16. भगवान् वशमें कैसे हों?
  17. दयाका रहस्य समझने मात्र से मुक्ति
  18. मन परमात्माका चिन्तन करता रहे
  19. संन्यासीका जीवन
  20. अपने पिताजीकी बातें
  21. उद्धारका सरल उपाय-शरणागति
  22. अमृत-कण
  23. महापुरुषों की महिमा तथा वैराग्य का महत्त्व
  24. प्रारब्ध भोगनेसे ही नष्ट होता है
  25. जैसी भावना, तैसा फल
  26. भवरोग की औषधि भगवद्भजन

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